जो आपदा के वक्त सेवा के लिए खड़े न हो सके...

ओडिशा की रेल दुर्घटना...

उन  संस्थाओं संगठनों का क्या करे....?
जो आपदा के वक्त सेवा के लिए खड़े न हो सके....
आपदा विपदा के इस वक्त सामाजिक,आध्यात्मिक संस्थाओं की भूमिका क्या होनी चाहिए...
फर्स्ट न्यूज(संजय सनम)
बड़े बड़े नाम और पदभार सम्हाले बड़े व्यक्तियों की ऐसी संस्थाएं क्या अपनी असली जिम्मेदारी को सही रूप से निभाती है 
कुछ अपवादों को छोड़कर ओपचारिकता की रस्म अदा कर और कई बार तो आपदा में भी लोग अपने फोटो सेशन करते दिखते है और सोशल मीडिया में उनकी इस सेवा के  दृश्य देख कर देखने वाले उनकी सेवा भावना का अंदाज खुद लगा लेते है।
जिस क्षेत्र में कोई भी आपदा घटती है उस क्षेत्र   के सभी समाजों की सामाजिक,आध्यात्मिक संस्थाओं और विशेषकर युवा संगठन की जिम्मेदारी अधिक हो जाती है...अगर ये लोग अपनी भूमिका जीवन रक्षक की तरह निभाते है तो भूख,प्यास और इलाज के अभाव से मरने वाले फिर इन फरिश्तों की वजह से बच जाते है।
पर यहां भी जब कोई अपने समाज के पीड़ितों तक ही सिमट जाता है तब ऐसी छोटी सोच धिक्कार के ही काबिल होती है...
जब जीवन खतरे में हो उस वक्त सिर्फ अपना समाज नही देखा जाता  .. उस वक्त तो दुश्मन की दुश्मनी को भी नजरंदाज करके पहले उसके प्राण बचाने की कोशिश की जाती है।
पर अफसोस तब होता है जब संस्थाओं के इन बड़े नामों को भी समाज के व्यक्ति फोन करके,सोशल मीडिया में खुले पत्र से सवाल करके यह पूछते है कि आपके क्षेत्र में इतनी बड़ी दुर्घटना हुई ...हमारे समाज की संस्थाओं की भूमिका वहां खड़ी क्यों नहीं दिखी!
सरकार का तंत्र सब तक नहीं पहुंच पाता उस वक्त सामाजिक संस्थाओं के सेवा वीर अपनी भूमिका संयुक्त रूप से एक साथ आ कर बहुत बड़ी राहत प्रदान कर सकते है।
अफसोस तब होता है जिनको यह सब करना चाहिए क्योंकि समाज की बागडोर उनके हाथ में है उनको अपने समाज की युवा शक्ति को आवाज देनी चाहिए और उसके साथ सेवा शुरू कर देनी चाहिए...पानी दूध और कुछ खाने का सामान भी अगर वक्त पर पहुंच जाए तो जो बच गए है उनके प्राण को शक्ति दे सकता है।
बहुत सारे ऐसे जो इलाज के अभाव में दम तोड रहे है और उनको इंतजार है कोई आए और उनको उपचार दे दे ... न जाने ऐसे कितने लोगों को जीवन दान सही वक्त पर पहुंच कर दिया जा सकता था।
बहुत सारी संस्थाएं अपनी इस भूमिका को निभा भी रही होगी पर सवाल तो उनके लिए है जो सक्षम होकर भी निट्ठले बने हुए है....
ऐसे संगठन जिनके पास सेवाभावी व्यक्तियों की बड़ी तादाद भी है और सेवा के लिए खर्च करने का अर्थ भी है ...इनकी सेवा कितनी बड़ी राहत दे सकती है...ऐसे समय सक्षम संगठन सरकार की तरफ नही देखते वे अपनी मेडिकल टीमें लगा देते है और देखते ही देखते न जाने कितने प्राण बचा देते है।
इन फरिश्तों  को दुनिया तो छोड़िए कुदरत भी सलाम करती है।
पर सवाल तो उन पर है जिनका नाम तो बड़ा पर सोच छोटी और दर्शन उससे भी छोटे.. जिम्मेदारी से भागने वाले  ऐसे लोग अपने समाज की प्रतिष्ठा को भी शर्मशार करते है और दुनियां इनको धिकारती है ।
सभी समाज के लोगों को अपनी अपनी सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों की भूमिका आपदा के वक्त निश्चित रूप से करना चाहिए और ऐसे विकट वक्त पर जो सेवा की भूमिका नहीं निभाता दिखे उससे त्यागपत्र मांग लेना चाहिए .
 विपक्ष की राजनीतिक पार्टियां भयानक रेल दुर्घटना के लिए रेल मंत्री से त्यागपत्र मांग रही है जबकि दुर्घटना की जानकारी मिलते ही रेल मंत्री उस स्थल पर खड़े होकर अपनी जिम्मेदारी निभाते दिखे है।
पर अगर आपके समाज की संस्थाएं अपनी भूमिका का निर्वाह नहीं करती दिखे तो समाज के आम लोगो को उन गणमान्य लोगों से सवाल पूछने चाहिए और त्यागपत्र भी मांगना चाहिए।
कुछ खबरे ऐसी भी है कि समाज की संस्थाएं सोई हुई थी पर उसी समाज के लोग अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे थे...ऐसे सभी फरिश्तों को प्रणाम करते है।काश इनके साथ संस्थाओं के परिवार संयुक्त रूप से खड़े हो जाते तो न जाने कितने जीवन बच जाते ..
घटनाएं हमसे नही रुकती क्योंकि वो हमारे अधिकार क्षेत्र में नही होती...पर ईश्वर ने मानवीय सेवा का अधिकार तो इंसानों को दिया है...और संस्थाएं,संगठन उसके ही प्रारूप होते है....जो अपनी जिम्मेदारी मानवीयता के लिए निभाते है उनको सारा जहां सलाम करता है
पर जो जिम्मेदारियों से मुंह चुराते है...वे अपने समाज का नाम डुबोते है...और ईश्वर भी उन्हें कैसे माफ कर सकता है।
सुनिए यह खास वीडियो ....इस लिंक को क्लिक करके .....https://youtu.be/Jly9gT3pXAc

https://ern.li/OP/1b4lm7ri5s2

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