मुहूर्त विज्ञान अपने आप में विलक्षण है क्योंकि कालखंड में से विशेष संदर्भ के लिए विशेष शुभ समय का चयन मुहूर्त विज्ञान से ही होता है और इसमें पंचाग अर्थात पांच अंगों की विशेष भूमिका होती है।
अलग अलग संदर्भों के लिए अलग अलग मुहूर्त होते है क्योंकि वार,तिथि,नक्षत्र,चंद्रमा और करण की भूमिका संदर्भ विशेष अलग अलग होती है...किसी एक मुहूर्त के लिए कोई एक तिथि त्याज्य हो सकती है पर अन्य संदर्भ में वो ही तिथि विशेष शुभ हो सकती है।
अगर यात्रा मुहूर्त की बात की जाए तो शुरुआत शुभ और अशुभ वार से ही हो जाती है...हम किस दिशा में यात्रा कर रहे है वो दिशा हमारी गणना का आधार बनकर पंचाग के पांच अंगों का शास्त्रीय मत से संयोग कर हमको श्रेष्ठ मुहूर्त प्रदान करती है।
यात्रा के लिए यात्रा की दिशा के साथ वार की शुभता और अशुभता का निर्णय किया जाता है यहां पर दिशा शूल का विचार महत्व पूर्ण होता है।
यात्रा के लिए किस वार की किस दिशा में यात्रा निषेध बताई गई है यह इस चौपाई से आसानी से समझा जा सकता है ..
सोम शनिचर पूर्व न चालू। मंगल बुध उत्तर दिशि कालू।
रवि शुक्र जो पश्चिम जाये। हानि होय पथ सुख नहीं पाये।
बीफे दक्षिण करे जो यात्रा। फिर समझो उसे कभी लौट के न आना।
अर्थात सोम शनिचर को पूर्व तथा मंगल और बुध को उत्तर दिशा में कभी भी यात्रा नहीं करनी चाहिए। वहीं रवि शुक्र को पश्चिम तथा वृहष्पति को दक्षिण दिशा में भूलकर भी यात्रा नहीं करनी चाहिए। कम से कम इतना तो अवश्य ही ध्यान रख सकते है।
दैनिक या रोजमर्रा की यात्रा के प्रसंग में मुहुर्त का विचार करना अत्यावश्यक नहीं है। यात्रा मुहूर्त के लिए दिशाशूल, नक्षत्र शूल, भद्रा, योगिनी, चन्द्रमा, शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र इत्यादि का विचार किया जाता है।
यात्रा के लिए मुख्य रूप से चर नक्षत्र की महत्ता विशेष बताई गई है क्योंकि यात्रा में निरंतर गति रहती है इसलिए गतिशीलता वाले नक्षत्र का विशेष महत्व बताया जाता है। चर नक्षत्र के साथ यात्रा के लिए अन्य शुभ नक्षत्रों का भी समावेश यात्रा मुहूर्त में बताया गया है।
अश्विनी(Ashwani), हस्त(Hast), पुष्य(Pushya), मृगशिरा(Mrigshira), रेवती(Raivti), अनुराधा(Anuradha), पुनर्वसु(Punarvashu), श्रवण (Sravan), घनिष्ठा (Ghanistha) नक्षत्र हो तो यात्रा करना शुभ और अनुकूल होता है अर्थात आपको इसी नक्षत्र में यात्रा करनी चाहिए। इन नक्षत्रों के अतिरिक्त आप उत्तराफाल्गुनी(Uttrafalguni), उत्तराषाढ़ा(Uttrasadha), और उत्तराभाद्रपद (Uttravadrapad) में भी यात्रा कर सकते हैं परन्तु ये नक्षत्र यात्रा के लिए वैकल्पिक है।
2.नक्षत्र शूल (Nakshatra Shool)
यात्रा से पहले दिशा का विचार कर लेना चाहिए। ज्योतिषशास्त्र में नक्षत्रों की अपनी दिशा निर्धारित है, जिस दिन जिस दिशा का नक्षत्र होगा उस दिन उसी दिशा में यात्रा भूलकर भी नहीं करनी चाहिए। यथा:– ज्येष्ठा नक्षत्र की दिशा पूर्व, पूर्व भाद्रपद की दिशा दक्षिण, रोहिणी नक्षत्र की दिशा पश्चिम तथा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र की दिशा उत्तर निर्धारित है अतः जिस दिन जो नक्षत्र हो उस दिन उसी नक्षत्र की दिशा में यात्रा करना निषेध है। जिस दिशा में आपको यात्रा करनी हो उस दिशा का नक्षत्र होने पर नक्षत्र शूल लगता है अत: नक्षत्र की दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए।
3. तिथि विचार (Tithi Vichar)
यात्रा मुहूर्त विचार में तिथि का अपना महत्व है। ज्योतिषशास्त्र में यात्रा हेतु द्वितीया. तृतीया, पंचमी, दशमी, सप्तमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथि को बहुत ही शुभ माना गया है। कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि भी यात्रा के संदर्भ में उत्तम मानी जाती है। इन्ही शुभ तिथियों में यात्रा करनी चाहिए इसके अतिरिक्त तिथियाँ त्याज्य है।
विष्टि करण में यात्रा नहीं करनी चाहिए क्योकि इसमें भद्रा दोष लगता है।
5. वार विचार (Var Vichar)
यात्रा के लिए दिशा के आधार पर वार के चयन की बात शास्त्र सम्मत दोहे से ऊपर बताई गई थी उस संदर्भ की पुनः विवेचना यहां पर की गई है।
सोम, शनिचर को पूर्व तथा मंगल और बुध को उत्तर दिशा में कभी भी यात्रा नहीं करनी चाहिए। वहीं रवि, शुक्र को पश्चिम तथा वृहष्पति को दक्षिण दिशा में भूलकर भी यात्रा नहीं करनी चाहिए। यात्रा के लिए बृहस्पति और शुक्रवार को सबसे अच्छा माना गया है। वहीं रवि, सोम और बुधवार यात्रा के लिए मध्यम माना गया है। मंगलवार और शनिवार यात्रा के लिए अशुभ है अतः यह शुभ-यात्रा हेतु त्याज्य है। इस दिन कोई यात्रा न करे वही बेहतर होगा।
6. समय शूल (Time Shool)
सुबह के समय पूरब, संध्या में पश्चिम, अर्धरात्रि में उत्तर तथा मध्याह्न काल में दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए।
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