महारानी के हाथ में आ रही फिर कमान

महारानी के हाथ में फिर भाजपा की कमान....
फर्स्ट न्यूज :संजय सनम
कांग्रेस ने भाजपा से कर्नाटक छीना
क्या भाजपा कांग्रेस से राजस्थान छीन पाएगी..
यह सवाल है क्योंकि 2023 के आखिर में राजस्थान का विधान सभा चुनाव है..

नमस्कार
मैं संजय सनम...आप पढ़ रहे है डिजिटल फर्स्ट न्यूज ..आप सबका दिल की अनंत गहराई से अभिवादन...

 दोस्तो
कर्नाटक के चुनाव परिणाम ने जहां कांग्रेस में नई ऊर्जा का संचार किया है और जो कांग्रेस जीत ही  भूल  गई थी उसके मन में यह अहसास दिया है कि हारते हारते वो जीत भी सकती है...वही भाजपा के लिए भी यह संदेश साफ गया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव  में ये विधानसभा का चुनाव बहुत बड़ा माहोल बनकर अपनी भूमिका अदा  करेगा इसलिए....थोड़ी सी भी लापरवाही और एक भी गलत निर्णय की तकनीकी गलती भी थके हारे विपक्ष के मन को उत्साहित कर उनको एक जुट होकर लड़ने में मदद कर सकती है। 
शायद इसलिए राजस्थान को लेकर शीर्ष नेतृत्व का मिजाज बदला है और जो महारानी का विकल्प देने की सोच रहे थे वे अब राजनीतिक हालातों को देख कर फिर महारानी के हाथों में ही कमान देने का निर्णय कर चुके लगते है..
इधर जीत से उत्साहित कांग्रेस ने अपने घर की कलह को फार्मूले के आवरण में पाट करके राजस्थान की राजनीति का मिथक तोड़ने की कोशिश में दिख रही है तो इधर भाजपा कर्नाटक का हिसाब चुकता करने के मूड में है क्योंकि मध्यप्रदेश की सत्ता का संघर्ष भी कड़ा है कांग्रेस कर्नाटक को दोहराने की बात बड़ी बुलंद जुबान से वहां कह रही है।

 अब लगता है भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने वसुंधरा जी के पक्ष में अपना संकेत तब ही दे दिया जब उन्होंने वसुंधरा के घूर विरोधी  सतीश पूनिया जी के हाथो से कमान लेकर श्री जोशी के हाथों में सौंप दी थी पर यह खबर उस वक्त विश्लेषण का आधार विश्लेषकों के लिए नही बन पाई क्योंकि नेतृत्व परिवर्तन की बाते पहले से  चल रही थी ...यह संकेत पकड़ में तब आया जब प्रधानमंत्री जी की अजमेर रेली में महारानी की मंच पर प्रधानमंत्री जी के पास में उपस्थिति और प्रचार के होडिंग्स पोस्टर्स में महारानी को उचित जगह दी गई...दोनो के बीच अभिवादन और बात भी हुई और खबरे यह बताती है कि ये सब विरोधी गुट के नेताओ की उपस्थिति के बीच हुआ अर्थात महारानी को प्रधानमंत्री से अतिरिक्त सम्मान मिला ...
इस रेली का माहौल यह बताता है कि  भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने 2023 के चुनाव में रथ फिर महारानी को सौंपने का निर्णय कर लिया है क्योंकि भाजपा अभी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती..और इसलिए राजस्थान में महारानी के हाथ में ही कमान सौंपना इनकी मजबूरी भी है।
.कुछ खबरे इस माहोल के विपरीत यह सवाल भी कर रही है कि इस रेली में महारानी का संबोधन क्यों नहीं हुआ....क्यों नहीं बोली महारानी या क्यों नहीं महारानी से संबोधन करवाया गया...
वसुंधरा जी भी एक दिन पहले ही अजमेर अन्य सभी नेताओ की तरह आ  गई थी पर खबर यह भी कहती है कि तब राजे जी प्रधानमंत्री के आने से सिर्फ 5 मिनट पहले ही मंच पर क्यों पहुंची थी...?
क्या महारानी के मन में पिछले 2...3  वर्षो पहले के अतीत के पन्नो की खटास है  और क्या अब वो अपना मिजाज भी दिखाएगी....
केंद्रीय नेतृत्व के लिए भी विरोधी खेमे के नेताओ को चुप रखना ऊपरी तौर भी भले ही आसान हो पर अंदर से उतना ही मुश्किल भी है।
भाजपा नेतृत्व को इस बात का डर भी है कि आपसी घात प्रतिघात पार्टी के लिए नुकसान कर सकती है।.
और इसके लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के विरोधी खेमे को साधना अपने आप में एक चुनौती भी है क्योंकि टकराहट महत्त्वाकांक्षा की ही तो है और यह महारानी के हाथ में कमान आने से विरोधी खेमे का सपना भला कैसे पूरा हो सकता है पर वसुंधरा राजे जी के वफादारों के लिए यह माहौल बड़ी खुश खबरी से कम नहीं माना जा सकता क्योंकि इस माहोल में टिकट वितरण में भी बड़ी भूमिका वसुंधरा राजे जी की बन सकती है...कुल मिलाकर वर्तमान माहोल के आधार पर भविष्य की यह संभावित पटकथा है अब देखना यह है कि स्क्रिप्ट यही रहती है या आखिर समय में कोई नया पन्ना इस स्क्रिप्ट में जुड़ जाता है।
सुनिए यह खास वीडियो....इस लिंक पर क्लिक कीजिए...

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